प्राइवेट शिक्षकों एवं कर्मचारियों की परेशानियों को समझे आर्यन सिन्हा
नो कॉलेज नो स्कूल नो फीस की ये मुहिम को मैं बिल्कुल भी सपोर्ट नही करता हूं। क्योंकि शिक्षण संस्थानों के माध्यम से लाखो लोगो का घर चलता हैं। बस ड्राइवर , कंडक्टर , स्टाफ , नॉन टीचिंग स्टाफ और टीचिंग स्टाफ का भी भरण पोषण शिक्षण संस्थानों में आने वाले फीस पे ही निर्भर करता है। यहाँ एक महत्वपूर्ण सवाल हैं। आज सभी के मन मे है की जब हम बस का इस्तेमाल नही कर रहे तो बस फीस क्यों दे? जब स्कूल कॉलेज नही जा रहे तो मेन्टेन्स फीस क्यों दे? हा मैं मानता हूं ये सवाल बिल्कुल जायज़ है, इनके नाम पे फीस देनी भी नही चाहिए लेकिन स्कूल हो या कॉलेज सभी बच्चो एवं छात्रों की ऑनलाइन माध्यम से क्लास चल रही हैं। शिक्षक ऑनलाइन क्लास लेने के लिए कही ज्यादा मेहनत कर रहे हैं। क्योंकि उन पर भी दवाब हैं। कोर्स कम्पलीट करवाने का। ऐसी स्तिथि में हम उनके मेहनत और समर्पण को अनदेखा नही कर सकते । जरा सोचिए अगर इस महामारी के समय की मार शिक्षको को पड़ते रहेगी तो क्या भविष्य में कोई शिक्षक बनना चाहेगा?, और शिक्षक ही ना रहे तो देश क्या आगे बढ़ पाएगा?
एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते मैं नो स्कूल नो कॉलेज नो फीस को अपना समर्थन नही दे सकता ना ही इसकी सलाह दूंगा। हा सौ प्रतिशत (100%) कोई भी संस्थान फीस ना ले जिसमे बस फीस मेन्टेन्स फीस जैसे अन्य एक्स्ट्रा लगने वाली फीस को हटा कर फीस ले तो इसमे आधी समस्या का समाधान हो जाएगा। नो स्कूल नो कॉलेज नो फीस के नारे लगाने से पहले एक बार खुद को शिक्षक के जगह पर रख कर सोच ले क्या बीत रहा होगा उन शिक्षक लोगो पर और कुछ सवाल अपने आप से भी पूछिए। .क्या बच्चो की पढ़ाई रुकी? .क्या उनका ईयर बैक लगा? .क्या उनका सेमेस्टर प्रमोशन रुका? .क्या उनका साल बर्बाद हुआ? अगर आपका जवाब नही है तो क्या हम सही कर रहे है नो स्कूल नो कॉलेज नो फीस के मुहिम चला के? इस महामारी के वक़्त में हमे मिलकर ही एक दूसरे का सहारा बनना है, फिर हम शिक्षा वेवस्था थप कर के शिक्षण समुदाय को दर दर की ठोकर खाने पे मजबूर नही कर सकते।
आर्यन सिन्हा
छात्र:- उषा मार्टिन यूनिवर्सिटी रांची झारखंड
अध्यक्ष:- आर्यन ब्रदर्स कम्युनिटी