कैमूर में कायस्थ परिवार के लोगों ने अपने घरों में की चित्रगुप्त महाराज की पूजा


कैमूर । विष्णु और महेश के केंद्रीय शक्ति श्री चित्रगुप्त स्वयं परब्रह्म है और वे इस सृजक पालनहार और विध्वंसक भी हैं क्योंकि उनमें त्रिदेव की शक्तियां अपरंपार ऊर्जा के स्रोत सदाशिव से स्वयं नारायण अर्थात विष्णु उत्पन्न हुए और श्री विष्णु के नाभि कलम से श्री ब्रह्मा और ब्रह्मा के रौंद से श्री महेश और तीन का कार्य संसार के संचालन हेतु ब्रह्मा जी को सृजक श्री विष्णु को पालनहार और महेश को बिना विनाशक के रूप में निर्गत हुई लेकिन तीनों अपने अपने उत्तरदायित्व को निभाने में असफल साबित हुए।
जिसमें सभी लोगों में अव्यवस्था फैलने लगी और खासकर देव असुर नर नारी अप्सराएं सहित सभी लोको के प्राणियों पशु पक्षियों की पतंग वनस्पति सहित 84 लाख योनियों के कर्मो की गणना और कर्म के हिसाब से उनका अन्य योनियों में प्रवेश अथार्त सृजन और कर्मों के हिसाब से पालन पोषण और उनका अंत का क्रम गड़बड़ाने की वजह से और जिससे फैली अव्यवस्था को दुरुस्त करने हेतु श्री ब्रह्मा ने 1000 वर्षों तक कठिन तपस्या की जिसमें प्रसन्न होकर सदाशिव स्वयं श्री चित्रगुप्त के रूप में प्रकट हुए और त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु और महेश ने अपनी अपनी शक्तियां प्रदान की और इन शक्तियों की वजह से श्री चित्रगुप्त कर्मों के हिसाब से मुख्य गणक के साथ साथ विध्वंसक भी कह जाते हैं क्योंकि 84 लाख योनियों में गुप्त रूप से निवास कर सभी के कर्मों को लेखा-जोखा करते हैं और सभी को कर्मों के हिसाब से उन्हें योनि में प्रवेश कर आते हैं जिससे सभी लोको में व्यवस्था बनी रहती है।
सौभाग्य की बात है कि सभी के काया में उपस्थित होने के कारण कायस्थ के रूप में जाने जाते हैं। और सभी ने उनका चित्रगुप्त रहने की वजह से यह चित्रगुप्त कहलाय जिसका प्रमाण देव पुराणों उपनिषदों और पौराणिक ग्रंथों में उपलब्ध है लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि सभी सनातनीयो को इसका ज्ञान नहीं जिससे केवल ऋषि कुल के ब्राह्मण और कायस्थ कुल के ब्रह्म क्षत्रीय इनकी पूजन धूमधाम से करते हैं और और यहां पर यह भी विदित हो कि श्री चित्रगुप्त लेखनी दाता के साथ-साथ वाणी प्रदाता भी हैं क्योंकि लेखन को पढ़ने से ही स्वर भी आती है। इसीलिए इन की पूजन में कागज कलम दवा के साथ-साथ अन्य पूजन सामग्री जैसे चंदन अक्षत पत्तल वस्त्र रोली पूर्वा चौकी मौली थव कपूर झारी धूप दिया केसर सामग्री रुई दही फल कुश अदरक सहद मिठाई पच पात्र सुपारी भी अबीर अर्धा पीला सरसों योगो पवित्र गंगाजल कलश इत्यादि का प्रयोग किया जाता है।
श्री चित्रगुप्त सभी प्राणियों में निवास गुप्त रूप से करते हैं इसीलिए इनकी पूजन सभी को करनी चाहिए और इस बात के भी प्रमाण उपलबन्ध है कि दशरथ नंदन राम ने भी चित्रगुप्त की पूजन की थी यह भी यहां पर विचार करने वाली बात है कि सनातन धर्म में किसी की मृत्यु के उपरांत गरुड़ पुराण की पाठ क्यों की जाती है कहने का तात्पर्य यह है कि जीवन रहते हुए मानव यदि श्री चित्रगुप्त का पूजन करें तो वह अवश्य कि पाप मुक्त होकर बैकुंठ को जाएगा या जन्म मरण के संबंध में मुक्त हो जाएगा।
कैमूर से विवेक सिन्हा की रिपोर्ट