मोबारकपुर में रोपनी शुरू, एक महीना तक रोपनहारों के रहने के लिए सार्वजनिक भवन व खाने के लिए मेस शुरू

नालंदा (बिहार) – हरनौत प्रखंड के कई गांव में धान के बिचड़े की रोपनी की शुरुआत किसी पर्व से कम नहीं होती है। इस पर्व की शुरुआत मोबारकपुर में पांच दिन बाद हुई। क्योंकि मोतिहारी जिले से रोपनहारे पांच दिन देर से आये हैं। दस की संख्या में रोपनहारे यहां अब क्रमबद्ध रुप से करीब एक माह तक रुकेंगे। इस दौरान गांव के तमाम फसली रकवे पर धान के बिचड़े की रोपनी करेंगे। इनके रहने के लिए गांव के सरकारी सार्वजनिक भवन का उपयोग होता है। जबकि उनके लिए चाय, नाश्ता और भोजन के लिए मेस की व्यवस्था भी किसानों के सहयोग से की जाती है।


गांव के त्रिवेणी सिंह बताते हैं कि अभी गांव में मोतिहारी से पुरुष रोपनहार व सुपौल से महिला रोपनहार आये हैं। ज्यादातर किसान पुरुष रोपनहार से ही रोपनी कराते हैं। क्योंकि वे एक दिन में सात से आठ बीघा तक खेत में रोपनी का काम कर देते हैं। इन्हें प्रति बीघा ग्यारह सौ रुपये की दर से भुगतान किया जाता है। खुद त्रिवेणी सिंह अपनी 42 बीघा जमीन में रोपनी करायेंगे। इसकी शुरुआत हो गई है।
इसके अलावा मेष में चाय, नाश्ता व भोजन बनवाने और खिलाने में जो खर्च होता है। वह भी अंतिम समय प्रति बीघा के हिसाब से जोड़कर किसान चुकाते हैं। इसके साथ उनके घर से आने और फिर घर लौटने का खर्च भी किसान ही वहन करते हैं।

रोपनहारे धान के बिचड़े की रोपनी में काफी दक्ष होते हैं। एक दिन में सात से आठ बीघा खेत में रोपनी करते हैं। एक जगह पर बिचड़े भी दो से अधिकतम तीन तक लगाते हैं। साथ ही बिचड़ों के बीच निर्धारित दूरी भी छोड़ते जाते हैं। इससे जहां पौधों की बढ़वार बेहतर होती है। साथ ही तेज हवा चलने पर फसल गिरने की आशंका भी कम होती है। इससे कीट-व्याधि का प्रकोप भी फैलने में कमी आती है। जबकि, उपज पारंपरिक रुप से रोपाई से भी ज्यादा मिलती है। अक्सर कृषि वैज्ञानिक 15 से 25 दिन तक के बिछड़े की रोपाई को बेहतर बताते हैं। गांव के किसानों का कहना है कि हम लोग 30 दिन तक के बिचड़े की रोपनी कराते हैं। रोपनी के इस तरीके से उपज भी अच्छी मिल जाती है। त्रिवेणी सिंह बताते हैं कि रोपनहारों के द्वारा रोपनी में बिचड़े कम लगते हैं। इससे खेती की लागत भी कम जाती है।

रिपोर्ट – गौरी शंकर प्रसाद

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