झूठे मुकदमे में फंसे हुए एक शिक्षक को 7 साल बाद मिला इंसाफ

मुजफ्फरपुर । मानवाधिकार की लड़ाई में मिली ऐतिहासिक जीत अधिवक्ता डॉ. एस. के. झा के केस स्टडी रिपोर्ट को अब मानवाधिकार आयोग ने सराहा और मानवाधिकार आयोग के साथ उच्च न्यायालय पटना के आदेश पर अनंत राम और उसके परिवार की खुशियाँ वापस लौटी।

दरअसल मानवाधिकार अधिवक्ता एस के झा ने इस पूरे मामले में यह बताया कि को एक शिक्षक अनंत राम जो कि पढ़े-लिखे इंसान होने के साथ-साथ सादगी की मिसाल भी है व वर्ष 2012 में इन्हे ही एक झूठे मुकदमे मे फंसा दिया गया,पुलिस ने सही से जाँच नही किया,अगर पुलिस ने सही से ईमानदारी पूर्वक जाँच किया होता तो अनंत राम केस से कब का बरी हो गया होता लेकिन पुलिस ने घर बैठे पूरी जाँच कर डाली और इसका परिणाम ये हुआ की बेचारा एक निर्दोष 7 वर्ष तक जेल मे कैद रहा और वही कोर्ट में मामले की जब सुनवाई शुरू हुई तब पुलिस जाँच अधिकारी को ब्यान के लिये कोर्ट में बुलाया गया तब कोर्ट को यह जानकारी मिली कि कांड के जाँच अधिकारी तो वर्ष 2009 में ही मर चुके है यह देखने के बाद जज साहेब भौचक रह गये कि 2009 में मरे हुए एक दारोगा ने वर्ष 2012 मे कैसे जाँच किया,जज साहेब के पास एक तरफ पुरा केस का डायरी था तो दुसरी तरफ मरे हुए दारोगा का मृत्यु प्रमाण पत्र था और अब यह समझना मुश्किल हो रहा था कि आखिर वर्ष 2009 में मरा हुआ दारोगा 2012 में कैसे जाँच कर सकता है मुजफ्फरपुर जिला के तत्कालीन SSP रंजीत कुमार मिश्रा ने एक जाँच टीम गठित किये,जाँच टीम ने अपनी रिपोर्ट कोर्ट में सूपुर्द किया।जाँच टीम ने माना कि दारोगा की मृत्यु तो वर्ष 2009 में ही हो चुकी है,तो सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर केस का जाँच किसने किया?कोर्ट को मामले में और भी जाँच करनी चाहिए थी। लेकिन कोर्ट ने बिना पुलिस जाँच अधिकारी का ब्यान लिए ही सब हालात को जानने के बावजुद बेचारे निर्दोष को 7 वर्ष की सजा सुना दी।तब मामले को लेकर के मानवाधिकार आयोग पहूँचे,आयोग ने जाँच प्रारंभ कर दी,फिर माननीय उच्च न्यायालय में याचिका दायर किया गया तो उच्च न्यायालय ने केस को देखते ही बेचारे निर्दोष को दोषमुक्त करार करते हुए बाईज्जत रिहा कर दिया लेकिन बेचारा निर्दोष वर्षों तक जेल में बन्द रहा।आज भी यह सवाल रहस्य ही बना हुआ है की इस मामले की जाँच किसने किया? यह पुरा मामला बिहार की पुलिस व्यवस्था पर एक काला धब्बा है और अब इस तरह से मानवाधिकार की लड़ाई की ऐतिहासिक जीत हुई और पुलिस की शर्मनाक हार हुई।

रिपोर्ट – विशाल कुमार

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