बदहाली में गुजर कर रही नेशनल दंगल गर्ल
कैमूर । कैमूर जिले का नाम रौशन करने वाली दंगल गर्ल अनू गुप्ता जो 14 बार नेशनल में पार्टिसिपेट कर चुकी है और 12 बार स्टेट में गोल्ड मेडल जीत चुकीहैं। वही अन्नू गुप्ता आज आर्थिक तंगी से लड़ रही है। अन्नू गुप्ता कम उम्र में दंगल खेल में रुचि दिखाई जहां उसे परिवार का भी साथ मिला। लड़कियों के लिए व्यामशाला नहीं रहने के बावजूद बिना व्यामशाला के खेतों में लड़कों के साथ दंगल में दो दो हाथ लगा चुकी अनु गुप्ता दो बार बिहार से कोच बन कर बिहार का नेतृत्व कर चुकी है। 25 अगस्त 2019 को बिहार कुमारी का भी खीताब जीती है। वहीं 29 फरवरी को कैमूर केसरी से भी नवाजी गई है। इतनी प्रतिभा रहने के बावजूद आज आर्थिक तंगी के कारण बदहाली के आंसू रो रही है दंगल गर्ल। अनू गुप्ता के पिता टीवी रोग से पीड़ित हैं। घर में बड़ा भाई है जो परिवार से किनारे रहता है, वही छोटी बहन मां और पिता के साथ रहती है। घर की सारी जिम्मेदारी अन्नू के कंधों पर है। घर में छोटा किराना का दुकान है जो छोटी बहन चलाती है जिससे कुछ खर्चा निकल पाता है। वही अनू गुप्ता परिवार के घर चलाने के लिए अपने घर के सामने सड़क पर पेट्रोल बेचती है, फिर भी पहलवानी लड़ने के लिए अपने डाइट का भी नहीं प्रबंध कर पाती है ।
अनु गुप्ता बताती है मुझे दंगल में रुचि था इसलिए मैंने दंगल ही अपना कैरियर चुना। बहुत अच्छा कर भी रही थी 14 बार नेशनल में पार्टिसिपेट कि, 12 बार स्टेट में गोल्ड मेडल जीती, दो बार बिहार से कोच बन कर गई लेकिन मुझे कहीं से भी कुछ मदद नहीं मिला। लड़कियों के लिए व्यामशाला नहीं होने के बावजूद भी मैंने इतना कुछ किया। लेकिन अब सरकार से गुहार लगा रही हूं कि अगर सरकार मुझे सपोर्ट नहीं करेगी तो मेरी प्रतिभा यहीं पर दम तोड़ देगा। पीता टीवी के पेशेंट होने के कारण ज्यादा कुछ नहीं कर पाते हैं घर का खर्च चलाने के लिए मैंने पेट्रोल बेचना शुरू किया उससे भी जब पैसे नहीं मिल पा रहे थे तो मैं एक ब्यूटी पार्लर खोली लेकिन ग्रामिण इलाका होने के कारण वो भी नही चल पा रहा है। अब सारी उम्मीदें सरकार पर टिकी है
अन्नू की मां बताती है बेटी बहुत होनहार है। हम लोगों के पास पैसा इतना नहीं है कि हम लोग बेटी के लिए हर चीज व्यवस्था करा दें। अगर सरकार कुछ मदद करे तो बिहार का नाम रोशन कर सकती है
वही अन्नू के पिता बताते है मैं टीवी का पेशेंट हूं । घर के लिए चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता, अब सरकार से ही उम्मीद का सहारा है ।
रिपोर्ट-बशीर अहमद